गडब/सुरेश म्हात्रे
डोलवी अभयाश्रम मे महाशिवरात्रि का पर्व मनाया गया. एस अवसरवर भोलेनाथ की पूजा, अभिषेक, हरिपाठ, हवन, भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह पर्व विधी संपन्न हुई.
बद्रीनाथ से पधारे स्वामी निश्चलानंद की प्रमुख उपस्थिती मे ब्रम्हांनंद व्यास - उज्जैन और सहयोगी ने यह पर्व विधी किया. इसवक्त अभिषेक, हरिपाठ, पूजा, अभिषेक, हवन, भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह पर्व विधी चार प्रहर मे संपन्न हुई.फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है. शिव भक्तों के लिए यह पर्व बेहद खास होता है. भोलेनाथ की पूजा करने के लिए यह दिन श्रेष्ठ माना गया है. ये शिव और शक्ति के मिलन का दिन है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था,
हमारे धर्म शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि महाशिवरात्रि का व्रत करने वाले साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। जगत में रहते हुए मुष्य का कल्याण करने वाला व्रत है महाशिवरात्रि । इस व्रत को रखने से साधक के सभी दुखों, पीड़ाओं का अंत तो होता ही है साथ ही मनोकामनाएं भी पूर्ण होती है। शिव की साधना से धन-धान्य, सुख-सौभाग्य, और समृद्धि की कमी कभी नहीं होती। भक्ति और भाव से स्वतः के लिए तो करना ही चाहिए सात ही जगत के कल्याण के लिए भगवान आशुतोष की आराधना करनी चाहिए। मनसा... वाचा... कर्मणा हमें शिव की आराधना करनी चाहिए। भगवान भोलेनाथ.. नीलकण्ठ हैं, विश्वनाथ है। ऐसा वक्तव्य स्वामी स्वामी निश्चलानंद ने किया.हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रदोषकाल यानि सूर्यास्त होने के बाद रात्रि होने के मध्य की अवधि, मतलब सूर्यास्त होने के बाद के 2 घंटे 24 मिनट की अवधि प्रदोष काल कहलाती है।
इसी समय भगवान आशुतोष प्रसन्न मुद्रा में नृत्य करते है। इसी समय सर्वजनप्रिय भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। यही वजह है, कि प्रदोषकाल में शिव पूजा या शिवरात्रि में औघड़दानी भगवान शिव का जागरण करना विशेष कल्याणकारी कहा गया है। हमारे सनातन धर्म में 12 ज्योतिर्लिंग का वर्णन है। कहा जाता है कि प्रदोष काल में महाशिवरात्रि तिथि में ही सभी ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव हुआ था। ऐसा ब्रम्हांनंद व्यास ने कहां।